हर दिन, हम देखते हैं कि वह जगह जहाँ हम कभी खुद को स्वतंत्र महसूस करते थे, धीरे-धीरे सिमट रही है। एक ऐसा संसार, जो कभी प्रगति और अनंत संभावनाओं का वादा करता था, अब अदृश्य दीवारों वाली जेल जैसा दिखने लगा है। सुरक्षा और व्यवस्था के नाम पर, सरकारें और कंपनियाँ हमारी हर सोच, हर कदम, और हर निर्णय पर नियंत्रण बढ़ाती जा रही हैं। वह तकनीक, जिसे हमने जीवन को सरल बनाने के लिए बनाया था, अब निगरानी का साधन बन गई है।
ऐसा लगता है जैसे हम ओर्वेल के काल्पनिक संसार में जी रहे हैं, लेकिन इस बार यह कल्पना नहीं, बल्कि सच्चाई है। निगरानी का जाल धीरे-धीरे हमें जकड़ता जा रहा है, हमें सहूलियतें देता है, लेकिन बदले में हमारी निजता छीनता है। हर डिवाइस में एक कैमरा है। हर कदम एक निशान छोड़ता है। हर निर्णय पर किसी और की नज़र होती है।
स्वतंत्रता अब स्वतःसिद्ध नहीं है। यह एक विशेषाधिकार बनती जा रही है, जो धीरे-धीरे हमसे छीनी जा रही है। हम एक ऐसे युग में प्रवेश कर रहे हैं जहाँ जानकारी नई मुद्रा बन गई है, लेकिन वह मुद्रा हमारी नहीं है। हमारे हर क्रियाकलाप को अब अदृश्य डेटा बाज़ार में बेचा जा रहा है।
लेकिन सबसे चिंताजनक बात यह नहीं है कि हम पर निगरानी रखी जा रही है, बल्कि यह है कि हम चुपचाप इसे स्वीकार कर रहे हैं, अपनी स्वतंत्रता को आराम की झूठी भावना के बदले सौंपते जा रहे हैं। हर दिन, हम अपनी स्वतंत्रता का एक और टुकड़ा खो देते हैं। लेकिन कितना और खोने पर सब कुछ समाप्त हो जाएगा?
दुनिया खुद-ब-खुद नहीं बदलेगी। हम इसके शिल्पकार बने रहेंगे। क्या हम एक नई स्वतंत्रता की ओर पुल बना सकेंगे, या बस नई दीवारें खड़ी करते रहेंगे? जवाब अभी भी अधूरा है।